बैसाख का महीना और पूनम का चाँद है
दिल में कशिश जगाता , ये कैसा चाँद है?
बोधिवृक्ष के नीचे, बोधगया में था जिसने
गौतम को बुद्ध बना दिया, क्या वो चाँद है?
क्या युति थी वो, निरंजना नदी के किनारे
जब खीर का कटोरा लिए, सुजाता निहारे।
बुद्धत्व का अमृतत्व, लिए चाँद की किरणें
सिद्धार्थ को सिरजें, सबसे न्यारे और प्यारे।
सिखा दिया हमको, मध्यम मार्ग पे चलना
किसी को न पूजना, ख़ुद को ही है भजना।
न मन्दिर न मस्जिद, न गिरजा न रामद्वारा
कहीं पर न जाना , सदा स्वयम् में ही रहना।
कभी बुद्धत्व का था साक्षी, ये वो चाँद है
जन्म-निर्वाण, जिसने देखे , ये वो चाँद है।
फसाद में फँसे हुओं को बाहर निकाल के
जो दिलों को सुकून दे रहा , ये वो चाँद है।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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