तुम्ही हक़ीक़त , तुम्ही सदाक़त
तुम्ही से दुनिया मेरी चल रही है।
जिधर देखता हूँ, उधर तुम ही तुम
तुम्हारी रफ़ाक़त से, ये चल रही है।
बाहर भी तुम हो , अन्दर भी तुम
अजब दास्तान है चले जा रही है।
किसी को ख़बर तक नहीं हो रही
चुपके से पल पल चले जा रही है।
बाहर में भी तो तुम्हारी ही दुनिया
अन्दर ही फ़िर क्यों मिलते रहे हो?
कैसी ये तुमने क़सम खा रखी है
छिपके हमेशा क्यों मिलते रहे हो?
मुझको तो तुमने उजागर रखा है
ख़ुद को मगर क्यों छुपाके रखा है?
किसी को ये तो ख़बर ही नहीं है
मेरी ही पलकों में छुपा के रखा है!
सदाक़त = the truth. रफ़ाक़त = साथ ।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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