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Monday, August 26, 2024

कान्हा

ये दुनिया तुम्हारी, और मैं भी तुम्हारा, कान्हा 

तुम आते रहे हो अब आ जाओ फ़िर से कान्हा 

कितने जन्मों से तुमको पुकारता आ रहा हूँ मैं 

अबके न फ़िर से मायूस करो, मुझको कान्हा।


तुमने चरण धोये अपने बाल मित्र के, ऐ कान्हा 

अबकी बार अपने चरण हमसे धुला लो कान्हा 

 तुम तो लीला दिखाने में माहिर हो बेहद कान्हा 

अबके मेरे आँगन में भी दिखा दो खेला  कान्हा।


तुम्हारे सिवाये, अब कहाँ पे ढूँढूँ सहारा, कान्हा 

मेरे मन का अँधेरा कैसे मिटेगा, बताओ कान्हा 

रिझावों भुलावों का सहारा नहीं चाहिए, कान्हा 

तेरी रहमत के सिवा मुझे कुछ न चाहिये कान्हा।


मेरी आँखों के ये आँसू तो कभी देख ले, कान्हा 

ये जमुना की धारा है, तट पे फ़िर आजा कान्हा 

ये दिल की वादियाँ कब से सूनी पड़ी हें कान्हा 

कभी बाँसुरी फ़िर से इनमें बजा तो दे, कान्हा।


कन्चन - कामिनी से न बहलाना मुझको कान्हा 

इन खिलोनों से न मैं बहल पाऊँगा अब, कान्हा 

तू अब बना ले मुझको अपना पसन्दीदा कान्हा 

तमन्ना है कि उँगली पकड़ के चलूँ तेरी कान्हा।


तुम्हारी मुस्कुराहट का कोई सानी है क्या कान्हा 

तुम शरारत करते थे और मुस्कुरा देते थे कान्हा 

तुम मक्खन चुराते थे और मटकी फोड़ते थे कान्हा 

पर तुम्हारी मुस्कुराहट सबको रिझाती थी कान्हा।


जय कान्हा कुन्जबिहारी की  

अजित सम्बोधि