कैसे भूले वायदे निभाने?
संग संग थे दीप जलाने!
रख लेता मन में छुपा के
सपनों के संग में सजा के।
इबादत के लिए बचा के
दो घड़ी सब को भुला के।
काहे न आये तुम बुलाने
संग संग थे दीप जलाने!
कैसा भी हो भले ही नशेमन
वहीं पर तो मिलता है अमन।
वही तो होता दिल का चमन
दिवाली का हो गया आगमन।
इसी बहाने से आ जाते बुलाने
संग संग थे दीप जलाने!
हर गोशा मैं खोजा किया
जा जा के तलाशा किया।
यादों ने किनाया किया
तेरी मुस्कान मैं ढूँढा किया।
तुम न आए पे दीप जलाने
संग संग थे दीप जलाने!
ये मौक़े न हर दिन आने
बस बरस में इक बार आने।
क्या इतनी भी फ़ुर्सत न थी
चले आते जो वायदा निभाने?
कब आओगे अश्क़ मिटाने?
संग संग थे दीप जलाने!
नशेमन = घौंसला। गोशा = कोना।
किनाया= इशारा। अश्क़=आँसू।
दिवाली की शुभ कामनायें
अजित सम्बोधि