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Friday, February 3, 2023

आदऽऽमियत!

जाननी है हक़ीक़त तो बढ़ानी पड़ेगी , सलाहियत
मिटानी है नफ़रत तो दिखानी पड़ेगी , असलियत
भरम के सहारे तो बहुत जी लिये हैं , ज़िन्दऽगानी
अब कुछ ऐसे कर लें कि पा जाऐं , आदऽऽमियत।
 
बस एक तमन्ना है कुछ ऐसी हो जाए मशिऽऽय्यत
फ़िरसे सामने आ जाये वही पुरानी सी रिवाऽऽयत
जब इन्साँ होता था इन्साँ से रूबरू  तो लगता था
जैसे रब ने दी हो फूलों को खिलने की हिदाऽऽयत।

वो भी तो ज़िंदगी थी , मिलकर के करते थे इबादत
एक की दूसरे पर बरसती रहती थी हरदम, इनायत
दिवाली पर उनके यहाँ भी जलाया करते थे दीपक
मीठी ईद पे सेवैंय्याँ आती थीं, बतौर रस्मो रिवायत। 

कहाँ छिप गए वो शब ओ रोज़, वे जो थे मेहरबान
हमारे राज़दान, हमारे क़द्रदान, नज़्म ओ निगहबान
क्या चन्द दिनों के लिए ही आये थे बनकर मेहमान 
हम तो समझा करते थे, वो ही तो हैं हमारे मेज़बान!

सलाहियत= flair. मशिय्यत=God's will.
शब ओ रोज़ = रात और दिन।
नज़्म ओ निगहबान= poetry and caretaker.

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि। 

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