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Wednesday, November 27, 2024

वो दो घण्टे ( अरावली की वादियों में )

तेरा ख़्वाब मेरा भी ख़्वाब है 

क्यों न कह  दूँ  लाजवाब है 

जो ख़्वाब मैं   न बता  सका 

ये   उसका   ही   जवाब   है।

शादाब    है     नायाब      है 

माहताब  है      आदाब     है।


पेड़ों  से  गल  बहियाँ  चली 

गुलज़मीं  गुलज़ार  हो चली 

जम्बूरात   के   हुज्जूम   से 

 सलामती   मेने   माँग   ली 

ये  ख़्वाब  में  इक  ख़्वाब  है 

बख़ूबी   यहाँ    दस्तयाब   है।


बतखों को देखा सिमटते हुए

अबयज  का  घेरा  बढ़ते  हुए

क्या इन्सान  सीखेगा ये उनसे 

प्यार से मिलें ज़िन्दगी के लिए 

हाँ  हाँ   मिल  गया  जवाब  है 

रानाइयों   में हाज़िर जवाब  है।


आसमाँ  ने   चादर  उढ़ा  दी

मामूनियत की चादर उढ़ा दी

अब  सब महफ़ूज़ हें  यहाँ पे 

तहम्मुल  की  चादर  उढ़ा दी। 

उसी  का   तो  ये  जवाब  है

क्या ख़ूब दायरा ए अहबाब है। 


दो घण्टे  तुमने  बख़्शा  किये

करम है रब  का बख़्शा किये

मेरे  ख़्वाब  बाइस बन  के हँसे

ममनून  तुम्हारा  बख़्शा  किये।

बज  उठा  दिल  का  रबाब  है 

हर सिम्त  ख़ुशियों  का बाब है।


शादाब = हरा भरा। नायाब=unique.

माहताब = चाँद। गुलज़मीं= flower beds. 

गुलज़ार = रौनक़ वाला।जम्बूरात = honey bees.

दस्तयाब = प्राप्त।रानाइयों = सजावटों।

अबयज = whiteness. मामूनियत=security. 

तहम्मुल = love. महफ़ूज़ = secure. 

दायरा ए अहबाब = दोस्तों का दायरा।

बाइस=basis. ममनून=thankfulness. 

रबाब = lyre. बाब = द्वार।


ओम् शान्ति:

अजित सम्बोधि

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