क्यों याद आती है 14 फ़रवरी
हाँ जो हुआ करती थी रस भरी।
आज भी तो आगई है वो मगर
ये आँखें क्यों हें यूँ, आँसू भरी।
कैसे बीतते हें ख़ुशबख्शी के दिन
हज़ारहा दिन भी लगते हें एक दिन।
अब क्या बेड़ियाँ पड़ गई हें इनके
बमुश्किल गुज़रता है एक एक दिन।
क्या दुनिया बनाई है ऐ मालिक तूने
क्या है ऐसा जो न बनाया इसमें तूने।
क्या इतना हक़ नहीं हमें जानने का
क्यो छुपा के रख लिया ख़ुद को तूने?
तू दिखता तो तुझसे फ़रियाद तो करते
तेरे रूबरू दिल की बातें तो बयाँ करते।
तुम तो ग़मख़्वार हो, हमे पूरा एतिबार है
तेरे दरपेश होते, हमें तग़ाफ़ुल न करते।
ख़ुशबख्शी = ख़ुश क़िस्मती। हज़ारहा = हज़ारों।
बमुश्किल = मुश्किल से। ग़मख़्वार = हमदर्द।
दरपेश = रूबरू = सामने।तग़ाफ़ुल = ignore.
ॐ शान्ति:
अजित सम्बोधि
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