तुम अगर अपने शिव को पहचान लो
शिव को मनाना ज़रा भी मुश्किल नहीं।
तुम अगर अपनी साँसों को पहचान लो
शिव तक का सफ़र क़तई मुश्किल नहीं।
तुम अगर मानो तो उपवास ज़रूरी नहीं
तुम अगर जानो तो व्रत की हुज्जत नहीं।
लम्बी दूरियाँ तय करना भी लाज़मी नहीं
सच तो ये है वो तुम से, अलग है ही नहीं।
अपनी साँसों को समझने की कोशिश करो
हाँ इनको पढ़ पढ़ कर आज़माइश तो करो।
साँसो की इबारत में एक अजब सा जादू है
जब साँस थिर हो जाए, उसकी आस करो।
शिव थिर हुआ शून्य बन गया, शुभ बन गया
ख़ुद को मिटा दिया और वो शक्ति बन गया!
ख़ुद को मिटा लेना, समझ जाओगे कैसे वो
शिव से शम्भो, तत्पश्चात, शाम्भवी बन गया!
शाम्भवी, अर्थात, सभी कुछ सम्भव हो गया
जो असम्भव सा था वह भी सम्भव हो गया।
इस सृष्टि और स्रष्टा का दृश्य बदल गया
जो ख़ुद को कर्ता कहता रहा, दर्शक हो गया!
जय शिव शम्भो!
अजित सम्बोधि
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