Popular Posts

Total Pageviews

64951

Friday, March 28, 2025

वही 22 मार्च

 हाँ वही 22 मार्च 

जब मेरा रहबर  चला गया 

रहगुज़र   सूना   रह   गया।


 तुम जो न मिलते गीत न मिलते 

फूल  ये  मन  के, कैसे  खिलते 

बिन   गाये   ही   मैं   रह   जाता 

तुम  जो  न  आके  यूँ  मुसकाते।

 

तुम जो न मिलते ख़्वाब न मिलते 

तन्हा   दिन   मेरे,    कैसे    कटते 

आँखे      सूनी      सूनी      रहतीं

तुम    जो   मेरे    पास   न    होते।


 तुम जो  न  मिलते  दर्द न  खुलते 

अनजाने      में      अन्दर     घुटते 

जीवन      मेरा      बंजर      रहता 

अपना सलीका न तुम जो सिखाते।


रहबर = रास्ता दिखाने वाला।

रहगुज़र = रास्ता।


भूली बिसरी यादें 

अजित सम्बोधि

No comments:

Post a Comment