हाँ वही 22 मार्च
जब मेरा रहबर चला गया
रहगुज़र सूना रह गया।
तुम जो न मिलते गीत न मिलते
फूल ये मन के, कैसे खिलते
बिन गाये ही मैं रह जाता
तुम जो न आके यूँ मुसकाते।
तुम जो न मिलते ख़्वाब न मिलते
तन्हा दिन मेरे, कैसे कटते
आँखे सूनी सूनी रहतीं
तुम जो मेरे पास न होते।
तुम जो न मिलते दर्द न खुलते
अनजाने में अन्दर घुटते
जीवन मेरा बंजर रहता
अपना सलीका न तुम जो सिखाते।
रहबर = रास्ता दिखाने वाला।
रहगुज़र = रास्ता।
भूली बिसरी यादें
अजित सम्बोधि
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