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Saturday, April 12, 2025

मुझे ऐसी रूखसती चाहिए

 मेरे  जाने  पे  न  मातम  मनाना 

कुदरत का दस्तूर है आना जाना।

ये हक़ीक़त है इसे भूल मत जाना 

जाये बिना फ़िर कैसे होगा आना?


 मेरा  मज़हब  है  गले  से  लगाना 

 मेरी  फ़ितरत  है  तस्लीम  करना।

मैं बादल हूँ, मेरा निशाँ  मत ढूँढना 

हो  सके  तो  बस  ख़ामोश  रहना।


मेरे  जाने  पे   न   मरसिया   गाना 

 न  अपनों   को  नाहक  में रुलाना।

 ये   कारवाँ   यूँ  ही  चलता  रहेगा 

न   गुज़रे  ज़माने  पे  आँसू   बहाना।


मेरे  जाने  को   मुक़द्दस  ही   रखना 

 मुझे   हुज्जूम   से   दूर   ही   रखना।

मैं    भीड़    का    इन्सान    नहीं    हूँ 

चुनिन्दा    नज़रों   से  रुख़सत   करना।


 मेरी  राख   को   न  दरिया  में  बहाना 

बहर ए नूर में नहाता हूँ  ये  याद  रखना।

 ये  जिस्म  क्या  है?  ख़ाक  ही  तो  है? 

जब  ख़ाक  है तो  सुपुर्द ए ख़ाक करना।


 सफ़र   पे  निकलना   है,  तय्यार  हूँ  मैं 

वक़्त  की  पेशगोई  को,  पहचानता हूँ मैं।

 सभी  को  गुज़रना  है   इस  रहगुज़र  से 

है  ये कुदरत  का  दस्तूर,  वाक़िफ़  हूँ  मैं।


 सभी   को   अलविदा   कह   रहा  हूँ   मैं 

तहे दिल से शुकराना  अता कर  रहा हूँ मैं 

ये   ज़िन्दगानी   तो   नेमत   है    रब   की 

रब   को  भी   तस्लीम   कर   रहा   हूँ  मैं।


 फ़ितरत = प्रकृति। तस्लीम = प्रणाम।

मरसिया = शोक गीत। मुक़द्दस = पूजा।

हुज्जूम = भीड़। चुनिन्दा = चुनी हुई।

बहर ए नूर = प्रकाश का समुद्र। गंगा में बहाने 

जैसे कर्म कांड मत करना।रोज़ नहाता हूँ गंगा में।

सुपुर्द ए ख़ाक = मेरी राख़ तुलसी में डाल देना।

पेशगोई = क्या होना है उसे पहचान लेना।

रहगुज़र = रास्ता। अता = देना। नेमत = gift.

ये आख़िरी ख्वाहिशें हैं जो पूरी की जाती हैं।


ओम शान्ति:

अजित सम्बोधि।

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