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Tuesday, April 29, 2025

रोशन करता चलूँ!

 मैं अँधेरों को  रोशन करता चलूँ 

मुश्किलों को हरदम थकाता चलूँ 

 ज़िद है मेरी कि मैं सम्हल के चलूँ 

ख़ुद ब ख़ुद ख़ुदको, मिटाता  चलूँ!


 सितारों से  कदम  मिलाता चलूँ 

 शाख़ को गुलों  से सजाता  चलूँ 

हर  शै  को  हरदम  निभाता  चलूँ 

हर आह कों इबादत  बनाता चलूँ!


 ख्वाबों को ख्वाबों से जुटाता चलूँ 

 ठोकरों को लबों से पुचकारता चलूँ 

इसको किस्मत कहूँ या तेरी क़ुर्बत 

तेरे ही सपनों से सपने  बुनता चलूँ!


 खुदको = अहं को।  गुल = फूल।

शै = चीज़, स्थिति। इबादत = पूजा।

लबों = होठों। क़ुर्बत = निकटता।


 ओम शान्ति:

अजित सम्बोधि 

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