मैं गिर रहा था किसने थामा था मुझे?
अपना समझ किसने उठाया था मुझे?
मानोगे नहीं कि तुम थे वहाँ पे, पर मैं
अजनबी था तो कैसे पहचाना था मुझे?
वो कैसी आतिशबाज़ियाँ हो रही थीं?
वो कैसी फुलझड़ियाँ बरस रहीं थीं?
कभी सब्झ, गुलरू तो कभी नीलफ़ाम
सब मुझ से लिपटे चली जा रहीं थीं?
हाँ अब मैंने तुमको समझ लिया है
सच कहूँ तो मैंने तुमको देख लिया है
तुम कितना भी भरमाया करो मुझको
मैंने तुमको बख़ूबी पहचान लिया है!
सब्ज़ = हरी। गुलरू = पुष्पमुखी।नीलफ़ाम = नील वर्ण।
ओम शान्ति:
अजित सम्बोधि
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