देख कर के ये हालत मेरी
कहीं तेरा दिल न दुखने लगे
मुझे डर है ए आसमाँ ये कि
किसी दिन तू भी रोने न लगे।
अब कैसे सम्हालूँ ख़ुद को कोई तो ये बता दे
इन ग़मों के दरमियाँ मुझे मुस्कुराना सिखा दे।
अब देखो न किस तरह से ये
शाम ए ग़म सिमटता ही नहीं
हर तरफ़ छाया अँधेरा घना
दिया जलता कहीं दिखता नहीं।
क्या कुछ जियादह माँग रहा हूँ तू ये बता दे
यही तो कह रहा हूँ मुझे कुछ रोशनी दिला दे।
मेरे ऊपर थोड़ा ये करम करदे
ग़म से ग़म को मिटाना सिखा दे
या लपेट के मुझे अपने दामन में
इन ग़मों को मुस्कुराना सिखा दे
मैं जानता हूँ तेरी फ़ितरत तू कुछ भी कर दे
तो फ़िर पहिले मेरी ख़ुदी को ही तू मिटा दे।
ओम शान्ति:
अजित सम्बोधि
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