ये ना समझना मैं चला जाऊँगा
मैं तुमको तुम्हीं से ले के रहूँगा
चला हूँ मैं अब तक जितने क़दम
आसमाँ ने देखा किया दम ब दम
पर आसमाँ से अलग हो क्या तुम?
जिधर देखो उधर दिखते हो तुम!
तुम्हारे जैसा अलबेला तो हूँ नहीं
सबको पसन्द आऊँ नवेला भी नहीं
दिखने में तो अकेला ही दिखता हूँ
लुकाछिपी में ऐसा ही दिखता हूँ
किसी को कैसे बताऊँ कैसे हो तुम
हर पल निराले रंग में दिखते हो तुम!
पूछते हो कि मैं क्या किया करता हूँ?
तो मैं बताऊँ कि मैं इबादत करता हूँ
अक्सर तो फ़रियाद किया करता हूँ
कभी कभी मैं रोने भी लगा करता हूँ
मैं कहता हूँ कि मैं रो रहा हूँ और तुम
सिर्फ़ सिर्फ़ मुस्कराते दिखते हो तुम।
ओम शान्ति:
अजित सम्बोधि
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