आसमान साफ़ था
सामने चाँद था
मध्य रात्रि का वक़्त था
शायद दूसरा पहर था
चाँद में सुहास था
मौसम में सुवास था
कुछ ऐसा एहसास था
बल्कि पूरा विश्वास था
पक्षी का परिहास था
श्वास निश्वास था
हवा बह रही थी
और कह रही थी
मिलने का यही
तो वक़्त है सही
चलो एक गीत गुनगुना लें
कुछ पुरानी यादें दुहरा लें
जब भी हम मिले थे
हम दोनो अकेले थे
भीड़ भाड़ से अलग
उखाड़ पछाड़ से अलग
चाहे भीड़ हो
या भाड़ हो
दोनों में क्या फ़र्क़ है
दोनों ही ज़र्कबर्क हें
भाड़ में भभकते हें
भीड़ में भोंकते हें
यहाँ सुकूत था
आसमाँ अभिभूत था
मौसम का मज़मून था
चाँद का जुनून था
शोशा अफ़लातून था ?
नहीं, सब पुरसुकून था!
चाँद गोलमोल था
पूरा सुडोल था
करता कलोल था
अमोल था अनमोल था।
ज़र्कबर्क = तड़क भड़क। सुकूत = शान्त।
मज़मून = लेख। जुनून = गहरी रुचि।
शोशा = चुटकुला। अफ़लातून = Plato.
पुर सुकून = चैन से भरपूर।
ओम शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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