जन्माष्टमी के सुअवसर पर सभी कों शुभ कामनाएँ
एवं प्रणाम: अजित सम्बोधि।
भादों की अँधेरी रात, जमुना उफान पर
देवकी वसुदेव क़ैद में, कंस के आदेश पर
क्या सोच के आधी रात को कान्हा तुमने
देवकी की गोद भरी, सूनी रखने को उम्र भर?
तुमने जो अजीब ओ ग़रीबf दुनिया रची है
क्या आज तक किसी के समझ में आई है?
क्या इसलिए कि कोई सवाल न पूछ ले
तुमने पर्दे के पीछे अपनी जगह बना ई है?
तुम्हारी कायनात का आग़ाज़ ओ अंजाम है?
मेरा मन्तव्य है कि इसका कोई ओर-छोर है?
माना कि इन्तिहाई उम्दा और करिश्माई है
मगर क्या ये अनन्य सवालों के घेरे में नहीं है?
तुमने हमको बनाया है, हम तुम्हारी औलाद हैं
हम तुम्हारी ईजाद हैं, फ़िर क्यों हम नाशाद हैं?
क्या हमारे दिल नहीं है, कोई हम फ़ौलाद हैं ?
तुम मिलते नहीं कैसे बतायें जो हमारी मुराद हैं?
तुम जब यहाँ आये थे तो, एक इन्सान बन के आये
मिलन जुदाई देखीं, गालियाँ खाईं, रणछोड़ कहाये
मगर तुम्हारी पहिचान तुम्हारी चिर मुस्कान ही रही
क्यों निभा न पा रहे हम सूत्रों को जो गीता में गिनाये?
अजीब ओ ग़रीब = रहस्यमय।कायनात = सृष्टि।
आग़ाज़ ओ अंजाम = सीमा।इन्तिहाई = बेहद।
ईजाद = आविष्कार।नाशाद = दुखी।फ़ौलाद = लोहा।
मुराद= अभिलाषा। मुरीद = चेला।
तुम्हारा मुरीद
अजित सम्बोधि
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