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Friday, September 5, 2025

अन्दाज़ ए इबादत।

 तुम जो कहो नग़मा-ए-उल्फ़त सुनाऊँ?

कुछ    माज़ी    सर…गोशी    दुहराऊँ?

तुम्हारे  सरगम   की  ख़ातिर   दरकार 

दिल  में  छिपा   मेरा  बरबत  बजाऊँ?


 दिल की परतों में दबा वो   भेद सुनाऊँ ?

क़ैफ़ियत गुमनाम आज उजागर कराऊँ?

जुबाँ पे ला न पाया जिसे मैं अभी तक 

वो अन्दाज़ ए बयाँ  भी तुमको  सुनाऊँ?


एक  तुम्हारी ख़ातिर ही जिन्दा हूँ,  समझे?

 तुम्हारे  सिवा  कुछ  न  चाहिए ,  समझे?

और बता दूँ  एक  राज़  की बात  तुमको  

 हररोज़ मरता हूँ, सो थक गया हूँ, समझे?

 

अन्दाज़ ए इबादत = बन्दगी करने का ढंग।

नग़मा ए उल्फ़त = प्यार का गीत।माज़ी = पुरानी।

सर गोशी = कानाफूसी।बरबत = एक वाद्य यन्त्र।

क़ैफ़ियत = पहचान।अन्दाज़ ए बयाँ = बोलने का ढंग।


ओम शान्ति:

अजित सम्बोधि।

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