मुझे मत रोको मुझे बोलने दो
बन्द थी ज़ुबाँ आज खोलने दो
रहम खाओ मुझ पर, ख़ुद पर
सारे जहान पर, इज़ाज़त दे दो।
सच कह रहा हूँ मैंने देखी हैं
अपनी इन आँखों से देखी हैं
वो हरी भरी वादियाँ अंतहीन
उनमें विचरती गौऐं मैंने देखी हैं।
मैंने देखा है वो जो प्यार देती हैं
हाँ वो माँ के जैसा लाड़ देती हैं
भूल जाओगे ख़ुद को यक़ीनन
जब जीभ से तुम्हें लपेट लेती हैं।
मैंने देखा है बतख़ों को नज़दीक में
मैंने देखा कैसे सिमटती हैं वो घेरे में
न पैर हिलते हैं न गर्दन और न पंख
कैसा इज़ाफ़ा करतीं आपकी शान में।
कहीं पे डोर से झूलती गौरैया दिखेगी
कहीं शाख़ से लटकती तोरई मिलेगी
कहीं कचनार के खिलते फूल महकेंगे
कहीं गोभी के फूलों की क़तार मिलेगी।
यहाँ सब है कुदरती, नहीं कुछ कीमियाई
हर तरफ़ से फैली हुई है रब की रहनुमाई
आफ़ताब है दीप्त है, माहताब है दीप्ति है
इसलिए पसरी है हर सिम्त में ख़ुशनुमाई।
कुदरती = जैविक। कीमियाई = गैर जैविक।
आफ़ताब = सूरज जो दीप्त है, रौशन है।
माहताब = चाँद जो दीप्ति है, काम रोशनी बखेरना।
सिम्त = दिशा। रहनशीं रहरौ = रास्ते में बैठा पथिक।
एक रहनशीं रहरौ
अजित सम्बोधि

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