Popular Posts

Total Pageviews

Wednesday, July 30, 2025

अरावली की वादियाँ

 ये अरावली की वादियाँ हैं 

 यहाँ वीथियाँ हैं कुंजगलियाँ हैं 

लहराती पगडंडियाँ हैं 

भूलभुलइयाँ नहीं है।

 

ऊँची ऊँची चोटियाँ हैं 

भेड़ें हैं भेड़वालियाँ हैं 

छोटी छोटी मींगड़ियाँ हैं 

पेस्टिसाइड वाली नहीं हैं।


 ग़ुलज़मीं है रानाइयाँ हैं 

 कलियाँ हैं फुलझड़ियाँ हैं 

 अन्ना हैं पॉलीअन्ना हैं 

दोनों की गलबहियाँ हैं।


 ये सावन की फुहारें हैं 

कुछ मचलती बहारें हैं 

मेरी नज़रों के नज़ारे हैं 

पसन्द आयें तो सबके हैं।


 ग़ुलज़मीं = फूलों की क्यारियाँ।

रानाइयाँ = सजावटें।अन्ना = शालीनता।

 पॉलीअन्ना = ख़ुशमिजाज़  वाली।


 ओम शान्ति:

अजित सम्बोधि 

Sunday, July 20, 2025

अरावली की वादियों में फ़िर से दस्तक

पहले भी यहाँ आया, कुछ  ख़्वाब यहीं  भूल  गया 

आज उनसे रूबरू होने  को, मैं  फ़िर  से  आ गया।

 

ये कचनार का पेड़, मेरा गवाह 

ये वहीं खड़ा है, रस्ते पे निगाह 

  मानता है मुझको  अपना ही 

इसीलिए  रखता है  मेरी चाह।


ये वादियाँ हैं या कोई साज़ है 

इन वादियों में मेरी आवाज़ है 

 मैं प्यार से आवाज़ लगाता हूँ 

ये  करने  लगती  रियाज़  है।


वो आसमान देखिए क्या कर रहा 

मुझे अपने आगोश में लिए ले रहा 

इतना प्यार तो किसी ने नहीं दिया 

जितना  ये  बयाबान मुझे   दे रहा।


आज क्या आगया मैं यहाँ फ़िर से 

 लगता है सारे सावन लौटे फ़िर से 

 सोचिए ज़िन्दगी में ग़र सावन न हो 

क्या मतलब है जनम  लूँ मैं फ़िर से।


मैं बरबख़्त हूँ मेरा ख़ैरख़्वाह मुझे लेके यहाँ आ गया 

रब का ममनून हूँ वो मेरा हमदम बनके यहाँ आ गया।


 रूबरू = आमने सामने।रियाज़ = practice. 

आग़ोश = embrace. बयाबान = जंगल। 

बरबख्त = fortunate.ख़ैरख़्वाह = भला चाहने वाला।

 रब = ईश्वर।ममनून = thankful. हमदम =दोस्त।


ओम शान्ति: 

अजित सम्बोधि 

Friday, July 18, 2025

मनभावन है ये सावन

सावन  को दिल दे दिया, सावन ने दिल दे दिया 

 मौका मुहब्बत का हमें, फ़िर मौसम ने दे दिया।


ये सौदा बुरा नहीं है 

कोई ख़फ़ा नहीं है 

बेहद तपिश थी गो 

नतीजा बुरा नहीं है 

ये राज़े मुहब्बत है आ आ के बचा दिया 

 दस्तूरे फ़लसफ़ा ने किरदार निभा दिया।


 बैठा था कब से ग़मगीन  

अश्कों के  सागर में लीन 

 बारिश की झड़ी लगाकर 

  आब ए चश्म उठा लिया 

मनभावन है ये सावन, मैंने दीदार कर लिया 

जो तसव्वुर में था  मेरे, रूबरू  कर  लिया।


 ये सावन बड़ा आला 

जैसे पूरा भरा प्याला 

गरमी से  देता राहत 

जैसे भूखे को निवाला 

बादल को मुहब्बत है, ज़मीं को भिगो गया 

सावन को मुहब्बत है, फ़िर मिलने आ गया।

  

गो = यद्यपि। किरदार = role. आब ए चश्म = आँसू।

  दीदार = दर्शन। तसव्वुर = कल्पना। रूबरू = सामने।


 ओम शान्ति:

अजित सम्बोधि 

Saturday, July 12, 2025

सावन आ गया

सावन का महीना आगया, झूलों का मौसम आगया 

ज़मींन महकने लग गई, आसमान चहकने लग गया।


सावन की बहारें आ गईं 

 गुमनाम बहारें  छा गई 

 बौछारों की झड़ियाँ लग गईं 

 फुहारों की लड़ियाँ झूल गईं 

पेड़ों पे निखार आ गया, रंगत में उछाल आ गया 

 पत्तों में खुमार आ गया, फूलों पे शबाब आ गया।


शम्स का तेवर  पलट गया 

हवा का मिज़ाज बदल गया 

गुलशन जो सूख चला था 

दुलहन के जैसा सज गया 

 बादल का ढंग बदल गया, घटा बनके आ गया 

मौसम जो बदरंग था, रूमानी बन के आ गया।


 अम्बर में परिन्दे छा गये 

 फ़िज़ाएँ बदलने आ गये 

सुनसान  पड़ी हवाओं में 

चहचहाहट ले के आ गये 

 सावन क्या आ गया,  नया मज़मून लेके आ गया 

 हर इन्सान के चेहरे की, इबारत बदलने आ गया।


 गुमनाम = unknown. ख़ुमार = intoxication.

 शबाब = तरुणाई। शम्स =  सूरज। गुलशन = चमन।

रूमानी = romantic.  मज़मून = मूल लेख, मुख्य बात।

इबारत = इमला, script.


ओम शान्ति:

अजित सम्बोधि 

Thursday, July 10, 2025

गुरु पूर्णिमा 2025

मैं सोया करा रात भर, तुम साँस ढोया करे रात भर 

कौन करेगा प्यार इतना तुमने किया है जैसा उम्र भर।

तुम्ही मेरा दाता 

तुम्ही हो नियंता 

तुम्ही मेरे करता 

 तुम्ही भवितव्यता 

हर सुबह सूरज बनके उठाते रहे, अपने अंक में भर 

 कौन है सिवाय तुम्हारे ऐसा मददगार , हे विश्वम्भर।


तुम्ही हो मेरे रहबर 

तुम्ही हो मेरे दिलबर 

मैं रहता रहा बेख़बर 

तुम रहे सदा ही मोतबर 

मैं जो फ़क़ीर हूँ, क्या करूँ तुम पर  मैं निछावर 

एक तेरे नाम के सिवा कुछ नहीं पास, हे गुरुवर।


बना  दो मुझे बे-ज़रर 

करदो मुझे मुक़र्रर 

अपना नामाबर 

भेज  दो मुझे दिसावर  

ये जिस्म तुमने दिया, बना दो इसे  यायावर 

बख़्श दो ऐसा हुनर, गूँजता फिरूँ बनके भँवर।


रहबर = राह दिखाने वाला।दिलबर = प्रिय।

मोतबर = भरोसेमंद।बे-ज़रर = बुरा करने में अक्षम।

 मुकर्रर = नियुक्त।नामाबर = डाकिया।

दिसावर =  परदेस।यायावर = ख़ानाबदोश।


ओम  जगतगुरूं नमामि 

अजित सम्बोधि 

Saturday, June 21, 2025

योग दिवस 2025

कहते हैं  आज योग दिवस है 

भला इसमें क्या असमंजस है 

योग एक ऐसा पूर्ण  विधान है

जो दायमी है, बेहद मुकद्दस है।


योग तो एक शाश्वत विधा है 

जो दूर कर देती हर दुविधा है 

जिस्म को  रूह से मिलाने की 

सभी को उपलब्ध ये सुविधा है।


हर दिवस ही योग दिवस है 

सबके लिए ही ये सरबस है 

जिन्हें रूह से रूबरू होना है 

उनके लिए  अहम ढाढ़स है।


योग का अर्थ  होता है  जोड़ना 

ज़रूरी है इस बात को समझना 

एक रास्ता जो रूह तक जाता है 

योग से है उस रास्ते को खोजना।


दायम = eternal. मुकद्दस = पवित्र।

सरबस = सर्वस्व। रूबरू = सन्मुख।


ओम शान्ति:

अजित सम्बोधि 


Thursday, June 12, 2025

मेरा चाँद और मैं

आसमान साफ़ था 

सामने चाँद था 

मध्य रात्रि का वक़्त था 

शायद दूसरा पहर था 

 चाँद में सुहास था 

मौसम में सुवास था 

 कुछ ऐसा एहसास था 

बल्कि पूरा विश्वास था 

पक्षी का परिहास था 

 श्वास निश्वास था 

हवा बह रही थी 

और कह रही थी 

मिलने का यही 

तो वक़्त है सही 

चलो एक गीत गुनगुना लें

कुछ पुरानी यादें दुहरा लें 

जब भी हम मिले थे 

हम दोनो अकेले थे 

भीड़ भाड़ से अलग 

उखाड़ पछाड़ से अलग 

 चाहे भीड़ हो 

या भाड़ हो 

दोनों में क्या फ़र्क़ है 

दोनों ही ज़र्कबर्क हें 

भाड़ में भभकते हें 

भीड़ में  भोंकते हें 

यहाँ सुकूत था 

आसमाँ अभिभूत था 

मौसम का मज़मून था 

चाँद का जुनून था 

शोशा अफ़लातून था ?

 नहीं, सब पुरसुकून था!

 चाँद गोलमोल था 

पूरा सुडोल था 

करता कलोल था 

अमोल था अनमोल था।


ज़र्कबर्क = तड़क भड़क। सुकूत = शान्त।

मज़मून = लेख। जुनून = गहरी रुचि।

 शोशा = चुटकुला। अफ़लातून = Plato.

 पुर सुकून = चैन से भरपूर।


ओम शान्ति:

अजित सम्बोधि।