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Monday, October 20, 2025

दिवाली आ गई है

 तीरगी टूटने लगी है 

शमा जलने लगी है 

रात मह-जबीं होने लगी है 

कहाँ छिपी थी अभी तक 

ए दिवाली बता तू 

फ़लक को बाहों में लिए 

लो दिवाली आने लगी है।

                    हवा बदल सी रही है 

                    फ़िज़ा बदल सी रही है 

                     पस ए मंज़र ही बदल रही है 

                      किसको करूँ मैं नज़राना पेश 

                      खुशियाँ करने लगीं बेहोश 

                      शाम गुलज़ार होने लगी है

                      दिवाली आने लगी है।

मौसम ने करवट लेली 

सपनों ने करवट  लेली 

बंधनों की गहराइयों में 

ज़मीं ने भी करवट है ले ली 

रंगत बदलने लगी है 

सीरत बदलने लगी है 

दिवाली आने लगी है।

                            राहत आ रही है 

                             पर्दा हटा के आ रही है 

                              नई सौगात ला रही है 

                              ज़िंदगी परवाज़ होने लगी है 

                             कोई न हारा, सब जीते 

                              दिल की आवाज़ आ रही है 

                              दिवाली आने लगी है।

पेड़ों का लिबास बदल गया 

फूलों का सलीका बदल गया 

नई सुवास आ रही है 

मन में हुलास आ रही है 

दिवाली आने लगी है 

दिवाली आ रही है

दिवाली आ गई है

क्या दिवाली है जैसे रंगो ने ली अँगड़ाई है?

बल खाती शम्माओं  की कैसी रहनुमाई है?


तीरगी = अंधकार। शमा = light.

मह-जबीं = चाँद जैसी। फ़लक = आसमाँ।

पस ए मंज़र = backdrop.परवाज़ = उड़ने।


सभी को दिवाली की बधाइयाँ 

एवम् शुभ कामनाएँ!


शुभेच्छु 

अजित सम्बोधि 

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