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Sunday, May 23, 2021

बोलता हूँ

जब भी बोलना होता है, बेशक बोलता हूँ 
ख़ामोशी रहे इसलिए  लिख के बोलता हूँ।

बाज़ार में मिलती ख़ामोशी, सब ख़रीद लेते
ख़ामोशी बिकती नहीं, बताने को बोलता हूँ।

कोई खंजर भी चलाए तो भला क्या होना है
ख़ामोशी के सिवा कुछ नहीं, यही बोलता हूँ।

आवाज़ करने के लिए, कोई दूसरा दरकार है
ख़ामोश ख़ुद को होना होता है, यह बोलता हूँ।

मैं जिस्म की बाबत तो कुछ कम ही बोलता हूँ।
ख़ामोशी हम-ज़ुबाँ है रूह की, वही बोलता हूँ।

लब सीं लेने से कभी ख़ामोशी नहीं आपाती है 
साँस तानदेन से लें तो आती है, यह बोलता हूँ।


ख़ामोशी हम-ज़ुबाँ है रूह की = ख़ामोशी और रूह 
एक ही बोली बोलते हैं।
तानदेन = नाभि से दो इंच नीचे एक बिन्दु।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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