क्या कुछ ऐसा भी है जो तू नहीं है?
अब थक गया हूँ तुझको ढूँँढते ढूँँढते
अगर बता देते तो हम कुछ और करते।
रात भर बारिश की आवाज़ सुनता रहा हूँ, नींद में
ज़िंदगी की शाम है, शायद तुम मिल जाओ नींद में।
लोगों को पता नहीं रात में फ़ुरसत कैसे मिलती है
मुझे तो तेरा एक करिश्मा देखने में रात बीतती है।
कितने लोग हैं जो तेरे चाँद सितारों को देखते हैं
हाँ तेरे चाँद और सितारे ज़रुर सबको देखते हैं।
तुझसे मुहब्बत करना कोई गुनाह तो नहीं है
आखिर ज़िंदगी जीना कोई आसान तो नहीं है।
ओम् शान्ति:
अजित संबोधि
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