मिले भी न होंगे ज़िन्दग़ी में कभी भी, जिनसे
पहली बार मिलने पर, तो मुस्कुराते हैं न सब?
कितना भारी होगा गोली दागना, भारी मन से?
कुछ लोग टीवी पर जंग करते हैं, हर शाम को
हम सोचते हैं कैसे रोकें अब इस कोहराम को
हमने पूछा किसी से जो जानकार थे, वो बोले
आन-बान की लड़ाई है, बचाना है निज़ाम को।
कहीं अगड़े और पिछड़े की जंग
कहीं पै गोरे और काले की जंग
जब झाँका अपने अन्दर तो पाया
चल रही ख़ुद की ख़ुद से ही जंग।
जीतनी है ग़र जंग, ख़ुद को जीत लो, साँईं
नफ़स पर नज़र, अपनी ही , रख लो , साँईं
अगर कोई करे हंगामा , चुपचाप सह लेना
मौका इबादत का , इबादत कर लो , साँईं।
नफ़स=साँस।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि
No comments:
Post a Comment