ये तो गंगा के बहते हुए जल की र वानी है
न समझना किसी किस्साख्वाँ की ज़ुबानी है
ये तो बिस्मिल हुए दिल की पहली निशानी है।
बख़्तर है मेरा नूरी, झिलमिल ओ अब्क़री
मुसल्लस में बैठ कर के, तेरी करूँ हुज़ूरी
तेरी इनायतों से, मुकम्मल है मेरा मसकन
तू ही मेरा मुकद्दर, सदा तू ही तो है ज़रूरी।
तू ने बचा लिया , दिखला कर मुझे उम्मीद
तेरा न बनू तो किसका, जाकर बनू मुरीद
जब भी हुआ हूँ रूबरू, तूफ़ानों के रेलों से
तूने हटा के बादल, दिखलाया था ख़ुरशीद।
तू रुक नहीं सकता, मैं तुझे खो नहीं सकता
तू हँस नहीं सकता, मैं तुझ पै रो नहीं सकता
कशमकश बढ़ रही है, कुछ कर नहीं सकता
दीवानगी मेरी हक़ीक़त, इसे खो नहीं सकता।
मुकद्दस=पवित्र। अब्क़री=genius, unique.
मुसल्लस=त्रिकोण। मसकन=घर। ख़ुरशीद=सूर्य।
Note: to understand त्रिकोण, please go to
my blog ' Tertius Oculus or the third eye'.
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि
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