उनके पास मुर्गा होगा, शायद इसलिए वह आती है।
अक्सर तो लोगों की सुबह अलार्म बजने पै आती है
लोग बटन दबा देते हैं तो सुबह रफ़ा भी हो जाती है।
कुछ लोग मुझसे भी पूछते हैं, मैं कैसे उठा करता हूँ
उनकी तसल्ली के लिए ये क़िस्सा सुनाया करता हूँ ।
मेरे पड़ोस के पेड़ पै एक बुलबुल का जोड़ा रहता है
उसमें से कोई एक है जो अलस्सबाह गाने लगता है।
कुछ देर बाद, दूसरे के गाने की भी, आवाज़ आती है
पहिली दूसरी, पहली दूसरी, बराबर आवाज़ आती है।
ये दोनों आवाज़ें, एक दिलकश, नग़मे में ढलती हैं
अदल बदल की मधुर संगत, मेरी सुबह, बनती है।
उस बुलबुल के जोड़े को , बारहा शुक्राना देता हूँ
तू देता है वही, जो दरकार है, रब को कह देता हूँ ।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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