रूह पर करने वाले मगर , नदारद मिलते हैं
मुश्किल है समझ पाना कि वक्त की मार से
जिस्म गिरते हैं, रूह के तोहफ़े बचे रहते हैं।
किसी को चाँद ख़ूबसूरत, दिखाई पड़ता है
किसी को मगर वो, दाग़दार दीख पड़ता है।
कोई चाहे या न चाहे, मगर ऐसा देखा गया
एक इंसान को भी चाँद तो, बनना पड़ता है।
ख़याल आता है तो उसे रोका नहीं जाता है
ख़याल आने पर ख़याल को, देखा जाता है।
ख़याल चलता रहता है, और चला जाता है
मगर देखने वाला, वहीं पे रुका रह जाता है।
जब देखने वाला , ऐसा , मुकम्मल होता है
वह देखा करता है, काम भी होता रहता है।
काम होता रहता है, फ़िर झगड़ना किससे ?
मैं करता हूँ बस यहीं से तो झगड़ा होता है।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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