कि जैसे तुमको ख़बर ही नहीं है।
तुम्हारी ही ख़ातिर दिल की पूजा
मसल्सल, मुनव्वर, चलती रही है।
मुझको है तुमसे ही नूर मिलता
बिना तुम्हारे तो ज़फ़र नहीं है।
भला मैं क्या कर सकूँगा तुम बिन
क्या तुमको ये भी ख़बर नहीं है?
मैं तुमको आख़िर क्या दे सकूँगा
फ़क़ीरी मुझको रास आ रही है।
ख़याल मेरा तुम को ही रखना
कि आख़िरी सफ़ पास आ रही है।
दिलों से मिलने हैं दिल ही आते
ये ही रवायत चलती रही है।
अगर जो कोई , दिल हार जाये
फ़तह उसी को , मिलती रही है।
मसल्सल = लगातार। मुनव्वर= प्रकाशमान।
ज़फ़र = विजय। सफ़ = क़तार।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
No comments:
Post a Comment