Popular Posts

Total Pageviews

65066

Monday, September 21, 2020

सच कहूँ

कभी मीरा बिलखती थी, कभी कबिरा बिलखता था
कभी रबिया बिलखती थी, कभी रूमी बिलखता था
ये दौलत मुहब्बत की , बेशुबह: नायाब होती है
सुदामा के ज़ख्म धो धो , कन्हैया बिलखता था।

मुझे डर है तुम मुझे फ़िर से लूट मत लेना
ये छिटकी हुई चाँदनी भी , छीन मत लेना
मैंने इबादत करी है , सनद तो नहीं माँगी
तुम मुझसे मेरी आवाज़ भी माँग मत लेना।

ज़ख़्म मुझको मिले बेहद, ये कैसे भूल मैं जाऊँ
ज़ख्म मेरे करम परवर , ये कैसे भूल मैं जाऊँ
ज़ख्मों की बदौलत ही तो तुमको याद रखता हूँ 
ज़ख्म नायाब दौलत हें , ये कैसे भूल मैं जाऊँ।

मैं किसी का हो नहीं सकता, मैं तेरा हो के बैठा हूँ 
कोई बहला नहीं सकता, मैं फ़ैसला करके बैठा हूँ 
कोई माने या न माने , मगर यह तो हक़ीक़त है
मैं तुझे खो नहीं सकता, मैं सबकुछ खो के बैठा हूँ ।

दौलत कमाने में , जिस्म को गँवा दिया
फ़िर ग़ैरत बचाने में,ज़र को गँवा दिया 
ज़िंदगी चुकती चली , जीना आया नहीं
मुहब्बत बाँटने का , मौका गँवा दिया।

ग़ैरत =लाज। ज़र=धन।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

No comments:

Post a Comment