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Monday, September 21, 2020

सच कहूँ

कभी मीरा बिलखती थी, कभी कबिरा बिलखता था
कभी रबिया बिलखती थी, कभी रूमी बिलखता था
ये दौलत मुहब्बत की , बेशुबह: नायाब होती है
सुदामा के ज़ख्म धो धो , कन्हैया बिलखता था।

मुझे डर है तुम मुझे फ़िर से लूट मत लेना
ये छिटकी हुई चाँदनी भी , छीन मत लेना
मैंने इबादत करी है , सनद तो नहीं माँगी
तुम मुझसे मेरी आवाज़ भी माँग मत लेना।

ज़ख़्म मुझको मिले बेहद, ये कैसे भूल मैं जाऊँ
ज़ख्म मेरे करम परवर , ये कैसे भूल मैं जाऊँ
ज़ख्मों की बदौलत ही तो तुमको याद रखता हूँ 
ज़ख्म नायाब दौलत हें , ये कैसे भूल मैं जाऊँ।

मैं किसी का हो नहीं सकता, मैं तेरा हो के बैठा हूँ 
कोई बहला नहीं सकता, मैं फ़ैसला करके बैठा हूँ 
कोई माने या न माने , मगर यह तो हक़ीक़त है
मैं तुझे खो नहीं सकता, मैं सबकुछ खो के बैठा हूँ ।

दौलत कमाने में , जिस्म को गँवा दिया
फ़िर ग़ैरत बचाने में,ज़र को गँवा दिया 
ज़िंदगी चुकती चली , जीना आया नहीं
मुहब्बत बाँटने का , मौका गँवा दिया।

ग़ैरत =लाज। ज़र=धन।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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