ऐसा न हुआ, एक आए दूसरा न हो, मिलने के लिए।
कभी मैं जाता हूँ उस चोटी पै, उनसे मिलने के लिए
पाता हूँ, वो चले गए दूर की चोटी पै, मिलने के लिए।
ज़ख्म भर जाते हैं, चोट मिलने के बाद
दिल नहीं भरते, बारहा मिलने के बाद।
मिलने के बाद भी बाकी है मिलना, शायद इसलिए
जज़्बा बनाए रखते हैं, आख़िरी बार मिलने के लिए?
असल में मिलना तो तभी न कहा जाता है
जब दो की जगह सिर्फ़ एक नज़र आता है।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि
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