Popular Posts

Total Pageviews

Friday, October 16, 2020

सुबह का चिराग़

रात ख़ामोश है, एक सितारा चमक रहा है
वक़्त की इनायत है, साथ लिए चल रहा है।

ज़िंदगी ग़र यूं ही चलती रहे, तो क्या हर्ज़ है
हां, वक़्त की ताबीर करना, तो मेरा फ़र्ज़ है।

मालूम नहीं , वफ़ा का दर्द से क्या रिश्ता है
हां ये मालूम है कि बेवफ़ाई से दर्द रिसता है।

कुछ लम्हे चुनने भर से ज़िंदगी नहीं बनती है
लम्हों को लम्हों में पिरोने से , ज़रुर बनती है।

क्या कुछ न हो जाता, एक ख़्याल आने भर से
आसान नहीं होता जीना, ऐसी आमदोरफ्त़ से।

किसी ने पूछा क्या मुमकिन है सितारों को छूना
मैंने कहा सितारों से पूछा उन्हें पसंद है ये छूना? 

मुझे क़तई मालूम नही, कि कैसा सबेरा होता है
मैं तो जब जगता हूं तो, चिराग़ जलाना होता है।

तसव्वुर में आने से कभी दूरियां कम नहीं होती
हां, मगर ये दख़लंदाज़ियां बेमानी भी नहीं होती।

बेमुरव्वती और•बेरिया शिकस्तों में दूरी होती है • निष्छल
एक से रंज होता और दूसरी से शतरंज होती है।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।


No comments:

Post a Comment