वक़्त फिसला जा रहा तू सम्हलता क्यों नहीं
क्यों बैठा है मायूस मुकैयद के मानिंद
वो तो आता है यक़ीनन तू बुलाता क्यों नहीं।
उल्फ़त है दरकार तो फ़िर बाँटता क्यों नहीं
निशाना लगाना है तो सहम छोड़ता क्यों नहीं
उसको मनाना है तो दर पे जाता क्यों नहीं
ये तो रिवाज़ है उसको निभाता क्यों नहीं।
मयूरा की तरह श्यामघन रटता क्यों नहीं
मीरा के मानिंद कृष्ण पुकारता क्यों नहीं
दीन के हैं दीनानाथ तू समझता क्यों नहीं
सुदामा के सखा को पहिचानता क्यों नहीं।
उसका दीदार पाने की चाहत करता क्यों नहीं
जज़्बा दिखाने की हिम्मत जुटाता क्यों नहीं
दम भरता था अपनी मुहब्बत का हरदम
अब मुहब्बत को हक़ीक़त बनाता क्यों नहीं।
दुनिया है फ़ानी हक़ीक़त पसंद क्यों नहीं
लोग आते हैं यहाँ मगर ठहरते क्यों नहीं
समझने की तमन्ना है अगर इसके बारे में
दस्ते रहबर कोई तलाशता क्यों नहीं।
रास्ता न बदलेगा ख़ुद को बदलता क्यों नहीं
अहमियत को नज़रंदाज़ करता क्यों नहीं
क्यों औरों को बनाता है रहनुमा अपना
उसकी ख़्वाइश के मुताबिक ढलता क्यों नहीं।
दिलकश=मनमोहक।मुकैयद=कैदी।
उल्फ़त=प्यार।सहम=तीर।दीदार=दर्शन।
जज़्बा=जोश।फ़ानी=नश्वर।
दस्ते रहबर=मार्गदर्शक का हाथ।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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