मंत्री,तंत्री,संत्री, उतरा सबका पानी।
कबिरा खड़ा बजार में, पूछति है सब काहि
घणो ढिढोरो•कोविद को, मोहे दीखत नांहि।• ज्ञानी
अहा ग्राम्य जीवन भी क्या है, ऐसी सुविधा और कहां है
पानी कोसों दूर है तो क्या, शौचालय बन गया यहां है।
चलती चक्की देख के लोग भये बेहाल
पीसनहारी पिस गई, बाकी करें मलाल।
ऊंचा पेड़ खजूर का, फल लागे अति नीक
पल में ऊपर चढ़ गया, फल खावे निर्भीक।
कबिरा सूता का करे, जागतऊ सोवो करे
जो चावे अमरित चखन, सूतोऊ जागण करे।
कांकर, पाथर जोड़ के, ठाकुरद्वारा लियो बनाइ
घंटा भेरी बज रहे, क्या बहरे हैं ठकुराइ।
निंदक नियरे राखिये, फिर कोई चिंता नांइ
देख मलाई निंदा करे, अपनु मलाई खांइ।
माटी कहे कुम्हार से, हम दोनो तो एक
किरपा देखो राम की, बासन बने अनेक।
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
धंधा चौपट कर लिया,क्या करना है अब ?
राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट
कंजूसी मत ना करो, घड़ा भरन की छूट।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
No comments:
Post a Comment