Popular Posts

Total Pageviews

Wednesday, November 18, 2020

हिफ़ाज़त

ये आँखें बड़ी नायाब हैं, इनमें सब कुछ दिखता है
बाहर का ही नहीं, जो अन्दर है, वह भी दिखता है
ये जितना देखती हैं , उससे ज़ियाद:दिखाती भी हैं
तुर्रा ये कि जो नहीं दिखाती इनमें वो भी दिखता है।

इसलिए अपनी आँखों को मैं हिफ़ाज़त से रखता हूँ 
शिफ़ा का ही नहीं, शिगुफ़्त का भी ख़्याल रखता हूँ।
हर चीज़ को अगर देखें , तो सेहत बिगड़ने लगती है
वो क्या देखा करें इस बाबत बख़ूबी ख़्याल रखता हूँ।

मैं अपने आँसुओं को भी बड़ी हिफ़ाज़त से रखता हूँ 
कहीं बेवक्त छलक न आऐं, इसलिए ख़याल रखता हूँ।
ये आँसू बड़े मासूम हुआ करते हैं, ख़ूब बहक जाते हैं
दिल के बहलावे में न आ जाएं, इन पर नज़र रखता हूँ।

ये दिल मुतफ़र्रिक है , इसलिए हिफ़ाज़त से रखता हूँ 
दूसरों से ही नहीं , ख़ुद से भी बचा बचा कर रखता हूँ।
कहीं ऐसा न हो कि यह पकड़ से बाहर निकल जाए
मैं अपने दिल में मुकम्मल 'उसको' सजा कर रखता हूँ।

शिफ़ा = सेहत। शिगुफ़्त= ख़ुशदिली। मुतफ़र्रिक= बेलगाम।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

No comments:

Post a Comment