जैसे इनायत मिल गई हो, सारे दहर की
लगता है लिपटा हूँ , रूंएदार दोशाले में
गरमाहट मिल रही, मुलायम लिहाफ़ की।
बिछी हुई है धूप की, उजली एक चादर
सबके ऊपर, चाहे तवंगर हो या गदागर
किसने कह दिया बर्फ़ानी हो गई बस्तगी
इतनी धूप तो काफ़ी है , करने को असर।
सर्दी क्या आई , धूप की सीरत बदल गई
दिन रहते रहते धूप, माहताब सी बन गई
गर्मियों की शाम के मानिंद सुहानी हो गई
मेरी मुश्ताक़ रूह की , हमजोली बन गई।
गरमी में सोचा न था , सर्द धूप के बारे में
तब क़वाइद हुई , धूप से बचने के बारे में
जो धूप नापसंद थी , पसंदीदा बन गई है
अहम है विचारना, दूसरे पहलू के बारे में।
सह=तीसरा।दहर=ज़माना।तवंगर=अमीर।
गदागर=फ़क़ीर।बस्तगी=bonding.
माहताब=चाँद।मुश्ताक़=उत्कंठित।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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