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Tuesday, November 24, 2020

दूसरा पहलू

अहा सर्दी की धूप, वो भी•सह पहर की• तीसरे
जैसे इनायत मिल गई हो, सारे•दहर की• ज़माने
लगता है लिपटा हूं , रूंएदार दोशाले में
गरमाहट मिल रही, मुलायम लिहाफ़ की।

बिछी हुई है धूप की, उजली एक चादर
सबके ऊपर, चाहे •तवंगर हो या°गदागर•° अमीर,फ़क़ीर
किसने कह दिया बर्फ़ानी हो गई•बस्तगी•bonding
इतनी धूप तो काफ़ी है , करने को असर।

सर्दी क्या आई , धूप की सीरत बदल गई
दिन रहते रहते धूप,•माहताब सी बन गई• चांद
गर्मियों की शाम के मानिंद सुहानी हो गई
मेरी•मुश्ताक़ रूह की , हमजोली बन गई।• उत्कंठित

गरमी में सोचा न था , सर्द धूप के बारे में
तब•क़वाइद हुई , धूप से बचने के बारे में• परेड
जो धूप नापसंद थी , पसंदीदा बन गई है
अहम है विचारना, दूसरे पहलू के बारे में।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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