फ़राख़ पेशानी , आवाज़ में फ़राज़
वो आए थे वहाँ, जहाँ पे मैं रुका था
झिझकते हुए पूछा, उलझा इक राज़।
सब क़िस्मत से होता है या , कर्मों से
उलझन में हूँ, जानना चाहता आपसे।
उन्होंने मुस्कुराके देखा था, मेरी ओर
बोले थे, एक क़िस्सा कहता हूँ तुमसे।
दो जिगरी दोस्त थे, बड़े ही नेकदिल थे
एक जाँ दो जिस्म, हर हाल में साथ थे।
जो क़िस्सा है, उसको बख़ूबी जानता हूँ
मैं उनसे वाक़िफ था, वो मेरे पड़ोसी थे।
एक कहता था, सब होता है क़िस्मत से
दूसरे ने कहा था , सब होता है कर्मों से।
एक को भरोसा था नीली छतरी वाले पे
दूसरा ख़ुश था, अपने कर्मों के भरोसे से।
उनको फँसा दिया गया चोरी के मामले में
शहर कोतवाल ने भेज दिया, हवालात में।
हवालात थी एक दूसरे मुल्क की सरहद पे
कर्मकुशल, कौशल से पहुंचा ग़ैर मुल्क में।
आज़ाद होगया, मगर बड़ा ग़म आलूद था
बिना हमनशीन के हरदम रहता बेचैन था
लौट कर आया फ़िर वहीं पे, जहाँ क़ैद था
हमदम को लेकर गया, जैसे ख़ुद गया था।
उन्होंने मेरी तरफ़ देख कर फ़िर कहा था
अब तुम सोच लो, आख़िर हुआ क्या था?
यह सारा कर्मसनेही का था, कर्म कौशल
या फ़िर नीली छतरी वाले का कमाल था?
नौख़ेज़= नई उम्र का। उम्रदराज़= अधिक उम्र के।
फ़राख़ पेशानी= चौड़ा माथा। फ़राज़= बुलन्दी।
ग़म आलूद= ग़म से भरा। हमनशीन= दोस्त= हमदम।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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