आसमान में समाँ बँध गया है
नज़र उठा के जो देखा है उसे
नज़ारा नज़र के नाम हो गया है।
वो रात का शहंशाह बना हुआ है
फ़िर आज ताबिंदातरीन हुआ है
जो चाहिए है वही माँग लो उससे
माँगने में तुम्हारा ख़ू छुपा हुआ है।
किरणों की डोर को पकड़ना है
उसके सहारे चाँद तक चढ़ना है
ग़लत मानने की ग़लती न करना
ये मुमकिन है इंसान को करना है।
हर एक इंसान इसे कर सकता है
वो ख़ुद को बख़ूबी बदल सकता है
जो बाहर है, वो ही तो अन्दर भी है
उसके पास है, वो पहुँच सकता है।
हाँ, अपना चाँद तुम हासिल कर लो
वो तुम्हारा ही है, बात करके देख लो
एक बार अगर मिल लोगे तुम उससे
तुम्हारे दिल में बैठ जाएगा , सोच लो।
बद्र= पूर्णिमा। ताबिंदातरीन= brightest.
ख़ू= spirit.
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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