उम्र ढलती गई, विचारते विचारते
डगर खोती गई, भटकते भटकते
थक चुका हूँ, सम्हालते सम्हालते
क्या मुमकिन नहीं, तू ले सम्हाल
ग़म के साये से हमें तू ले निकाल।
रात बढ़ती गई, कोई तारा दिखता नहीं
कश्ती चलती रही, साहिल मिलता नहीं
पलकें झपकी नहीं, इत्तिसाल होता नहीं
लुटती रही हर घड़ी, फ़ासला घटता नहीं
ज़िंदगी चलती रही, जीना होगया मुहाल
क्या मुमकिन नहीं, तू ही कर दे निहाल।
मुझको भरोसा है बस, तेरे ही नाम का
मैं तो हूँ शैदाई, तेरे जमाले कामिल का
कुछ तो है जो तू क़ाबिज़ है हर दिल में
आख़िर तू ही तो सहारा हर पामाल का
मुझे आस है तू बेहाली से करेगा बहाल
तवक्को है तू दिखायेगा अपना जलाल।
तवक्को= उम्मीद। इत्तिसाल= मिलन।
मुहाल= नामुमकिन। शैदाई= आशिक
जमाले कामिल = पूर्ण सौन्दर्य।
पामाल= पद दलित। जलाल= तेज।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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