रात में गुज़रता था , कबरिस्तान से।
अँधेरा था, कुछ टकरा गया पाँव से
इंसानी खोपड़ी थी,टकराया जिससे।
खोपड़ी लेकर घर आ गया, साथ में
हर लम्हे, खोपड़ी रखता था पास में।
शागिर्द ने पूछा पास रखने का सबब
कहा इससे मिलता है सब्र का मशरब।
गुस्सा हो, कहता हूँ अपनी खोपड़ी से
गुरूर न कर, तुझे भी मिलेगा ये तअब।
कोई पत्थर मारे, कहता फ़िक्र ना कर
आगे या पीछे, हश्र तो ये रहेगा होकर।
मशरब=सागर।तअब=चोट।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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