जिसको पता मालूम था रब के घर का।
रहता था नाम की मस्ती में बेफ़िक्र वो
फ़रिश्ता आया , देने इनाम पसन्द का।
पूछा बताओ क्या चाहिए भला तुमको
कहा फ़क़ीर ने कुछ न चाहिए मुझको।
फ़रिश्ता बोला कुछ नेमत तो लेनी होगी
ना लेने पर तो रब की बेअदबी जो होगी।
फ़क़ीर बोला, तुमने तो मुश्किल कर दी
तुम ही बता दो तुम्हारी पसंद क्या होगी?
फ़रिश्ते ने कहा माँगलो तुम्हारे छू लेने से
मरा हुआ भी लौट आएगा वापस फ़िर से।
फ़क़ीर ने कहा इसमें ख़तरे का इमकान है
किसी के भी मगरूर होजाने का कैवान है।
ऐसा करो जिस पर पड़ जाए मेरी परछाईं
खुशहाली मिलेगी, कह दो ये फ़रमान है।
मैं पीछे में मुड़कर कभी भी देखूँगा ही नहीं
तो मगरूर होने का डर मुझे सतायेगा नहीं।
किस्सा कहता है फ़क़ीर तभी से दौड़ रहा है
बिना रुके मसल्सल आज भी वो दौड़ रहा है।
पता नहीं कितनों को बख़्शी है ज़िंदगी उसने
वो तो बस रब्ब के प्यार में दौड़े ही जा रहा है।
मुहब्बत का पैग़ाम है सिर्फ़ प्यार करते जाना
हिसाब लगाने में तो माहिर है, सारा ज़माना।
सूफ़ुमनिश= सूफ़ी मन वाला। इमकान= संभावना।
कैवान= सबसे ऊँचा आसमान। मसल्सल= लगातार।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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