Popular Posts

Total Pageviews

Thursday, December 10, 2020

अलविदा

आज शाम कुछ ग़मग़ीन है
बैठी है जैसे परदानशीन है
फ़िजा में चहचहाहट नहीं 
माहौल दिखता संगीन है।

दरख़्त भी ख़ामोश खड़े हैं
न हिलने को मानो अड़े हैं
कुछ ऐसा लग रहा है जैसे
वो खुले में ख़ला में जड़े हैं।  

बादलों का एक झुंड खड़ा है
ग़मामा एक निकल पड़ा है।  
पुरनम है उसका रोआं रोआं
दरख़्त के ऊपर ही खड़ा है।

ग़मग़ीन होना एक कहर है
 बेनसीबी का एक पहर है
ग़म को बुलाया नहीं जाता
वो हर वक्त हाज़िर दहर है।

अभी अभी एक मैना आई है
एक शाख़ नीचे लटक गई है
एक मैना उल्टी पड़ी है; रस्मे
रवानगी अता कर दी गई है।

ख़ला=शून्य। ग़मामा= बादल का टुकड़ा।
दहर=समय। अता करना = देना।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

No comments:

Post a Comment