तुझी से ये दुनिया सजाए चला हूं।
जो दिल में सदा ही छिपाए रहा हूं
ख़ुद अपनी ज़िद से बताने चला हूं।
तेरी याद जब से , लेकर चला हूं
हरदम नया कुछ , पाता चला हूं।
रिश्ता जो तुमसे , पुराना रहा है
उसे जग में ज़ाहिर करने चला हूं।
मैं मरज़ी से तेरे , माफ़िक चला हूं
जो तूने है चाहा वो करता चला हूं।
जो तेरी रज़ा थी , वो मेरी रही है
यही बात सबको , बताने चला हूं।
घबरा के मैं महफ़िलों से चला हूं
दुनियावी बातें बिदा कर चला हूं।
मेरे हाल पर ही मुझे छोड़ दें सब
गुज़रा हुआ छोड़ कर के चला हूं।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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