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Wednesday, January 6, 2021

तिलोपा ने कहा था

तिलोपा ने नरोपा से कहा था, तुम बांस हो जाओ 
जैसे बांस खोखला होता है,तुम खोखले हो जाओ।
तुम उसे पा नहीं सकते हो, कभी अपने प्रयासों से
वही आयेगा तुम तक, तुम तो बस तैयार हो जाओ।

तुम एक कण मात्र हो उस पूर्ण के, उस अनन्त के
कुछ नहीं मिलेगा तुमको, नाहक दुस्साहस करके।
तुम से बस अपेक्षित है,तुम स्वयं को खाली कर दो
ताकि वह उतर सके, तुम में, बिना किसी बाधा के।

जब वह अनन्त चैतन्य तुम्हारे अन्दर उतर आयेगा
तुम्हारा हर विचार तुमको त्याग कर, चला जायेगा।
विचार ही से क्रोध, लालसा, मत्सर उपजा करते हैं
विचार बिना तुम कहाँ, सब चैतन्य मय हो जाएगा।

आँखें जब बन्द करोगे, उधर दरवाज़ा खुल जायेगा
चैतन्य प्रकाश रूप में , प्रवाहित करने लग जायेगा।
तुम बनोगे खोखली बाँसुरी, वह बजाने लग जायेगा
स्वर्गिक संगीतमय लहरी तुम्हें , सुनाने लग जायेगा।

कौन बहाता है नदी को, कौन सागर में गिरा रहा है?
कौन चलाता है चाँद को, कौन तारों को घुमा रहा है?
वह करता है इसीलिए चाँद तारे नदी सागर सुंदर हैं
फूल भी सुन्दर हैं क्योंकि वह ही उन्हें खिला रहा है।

जब तुम करते हो तो, संत्रास का उद्घाटन हो जाता है
मन भय ईर्षा मद स्पर्धा क्रोध से आक्रान्त हो जाता है।
हर वक्त मन रहता काँपता, अनिष्ट का डर लगा रहता
उसकी सुन्दर सी बगिया का,कैसा रूप बदल जाता है।

तुम हो लेशमात्र और संपूर्णत्व की करते हो अवहेलना
स्वयं को ही समझने लगे नियंता, ये कैसी है विडम्बना?
उसका जगत कितना सुन्दर है, शून्य बनकर समझना
वह कितना मधुर गाता है, बाधा न बनना, फ़िर सुनना।

जीवन जैसा है अति सुन्दर है, वह नहीं कोई समस्या है
समस्या है तो तुम्हारी हल करने की कोशिश समस्या है।
जीवन धारा बह रही है, बहाने वाला बहाता जा रहा है
तुम बांस बनकर बहते रहो, फ़िर नहीं कोई समस्या है।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।



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