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Thursday, March 4, 2021

मुंतज़िर

मेरी आंखों में जो लिखा है, सभी पढ़ नहीं पाते
वो मुह को ताकते हैं, ख़ामोशी समझ नहीं पाते
यह जो इबारत है, ग़ैबी मनकों से बना करती है
जो जुनूनी नहीं हें, वो मनकों को पिरो नहीं पाते।

कोई लम्हा होता है , आँखों में नक्श हो जाता है
कोई होता है , जो आँसू बनकर छलक जाता  है
दामन से पोंछने से वह , कोई पुछ नहीं जाता  है
हक़ीक़त में  वो नक्श ए फ़िल हजर बन जाता है।

धूप और चांदनी एक हैं , बस सीरत का फ़र्क़  है
आबो यख़ भी एक ही हें , बस सूरत का फ़र्क़ है
सिक्का एक होता है, गोकि पहलू दो हुआ करते 
वफ़ात और हयात में,सिर्फ़ एक साँस का फ़र्क़ है।

इस ख़िलक़त में हरदम, बहुत कुछ हुआ करता है
कुछ माक़ूल तो कुछ नामाक़ूल भी हुआ करता  है
जो हुआ करता है उससे बेख़बर रहें तो कैसा रहे ?
लगता नहीं हमारे न होने से , फ़र्क़ हुआ करता है।

मुन्तज़िर= इंतिज़ार करने वाला। ग़ैबी= supernatural
नक्श= print. आबो यख़= पानी और बर्फ़।
नक्श ए फ़िल हजर= engraved in stone.
वफ़ात और हयात= मृत्यु और जीवन।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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