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Monday, March 8, 2021

मुसाफ़िरख़ाना

जो मुसाफ़रत करता है, उसको मुसाफ़िर कहते हैं
जो सफ़र में साथ रहता है, उसे हमसफ़र कहते हैं
जो रहगुज़र पे मिलता है, उसको राहगीर कहते हैं
मगर जिससे दिल मिलता, उसे हमसफ़ीर कहते हैं।

दानिशमंद इस जहान को, मुसाफ़िरख़ाना कहते हैं
मुसाफ़िरान का ये ख़ानाख़्वाह है, इसलिए कहते हैं
यहां पर हर किस्म के मुसाफ़िरों की आमद होती है
कोई मुस्तक़िल होकर नहीं रहता, ऐसा सब कहते हैं।

कुछ लोग यहां मुसाफ़ात तो कुछ मुसारअत करते हैं
वहीं , कुछ मुसाअदत तो कुछ मुसादमत भी करते हैं
मगर कुछ ऐसे भी हुआ करते, जो मुसाबरत करते हैं
और , मुसाफ़िरख़ाने के ख़ालिक का , दीदार करते हैं।

और तब ये मुसाफ़िरख़ाना एक दौलतख़ाना बनता है
जहां पे जुस्तजू ख़त्म होती और फ़िर क़स्द मिलता है
ज़र्रा ज़र्रा इस ख़िल्कत का रौशनी से लबरेज़ होता है
सफ़र बन्द होता जब सुकूत ओ सुकून भरपूर होता है।

मुसाफ़रत= यात्रा। रहगुज़र= रास्ता। दानिशमंद= ज्ञानी।
खानाख़्वाह= पड़ाव। मुसाफ़ात= दोस्ती।मुसारअत= रंजिश।
मुसाअदत= मदद। मुसादमत= कष्ट। मुसाबरत= सब्र।
ख़ालिक़= स्रष्टा। जुस्तजू= तलाश। क़स्द= संकल्प। 
ख़िल्कत= स्रष्टि। लबरेज़= लबालब। 
सुकूत ओ सुकून= सन्नाटा और शान्ति।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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