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Saturday, March 20, 2021

वादा

मिलते रहे हैं, और मिलते रहेंगे , हम आप , बार बार
मिलने बिछड़ने का सिलसिला चलता रहेगा बार बार।

हम जब मिलेंगे तो आमने-सामने होंगे हम, बहुत  बार

पहिचान न सकेंगे, क़बा ए जिस्म होगा अलग, हर बार।

दिल की धड़कनें खींच कर ले आयेंगी पास, बार बार
एहसास हुआ करेगा, पहिले भी मिले चुके हैं, कई बार।

बहार आती है ख़ुशी लाती है, मगर जाती भी है हर बार
आख़िरकार जो आएगा बारबार,तो जाएगा भी बार बार।

ग़म की अंधेरी रातें आती हैं तो आया करें, मर्ज़ी उनकी
रात के बाद दिन तो बिला नागा आया करेगा, हर बार।

आपकी आवाज़ सुनाई पड़ेगी मुझको, जितनी भी बार
ये वादा है मिलने की जुस्तजू करूँगा मैं, उतनी ही बार।

क़बा ए जिस्म = जिस्म की ओढ़नी।
जुस्तजू = तलाश।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।


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