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Wednesday, March 24, 2021

कश्ती

मुझको मिली थी कश्ती सुहानी
जिसकी है सुन्दर सी एक कहानी
गाँव था छोटा सा गुमसुम सा एक
जिसमें मिली थी मुझको निशानी
बाक़रीना सब होता गया, घर मेरा सफ़ीना बनता गया
ऐसा रहा कुछ तेरा करम, सफ़ीना नगीना बनता गया।

बग़ीचा था फ़िर एक हमने लगाया
खिला फूल जो भी दिल से लगाया
बख़्शीश तेरी झड़ी बन गई
भर के जी सब कोई उसमें नहाया
सहारा जो तेरा मिलता गया, तेरा नाम बहाना बनता गया
तेरे साये में मैं चलता गया, रास्ता ख़ुद ब ख़ुद बनता गया।

सरहदें पार करते चलते गये
सफ़र में आगे को बढ़ते गये
हम तो रहे बेख़बर ख़ुद से लेकिन
तेरी ख़बर उसूलन रखते गये
किनारा नज़र से दिखता रहा, सफ़र ये बराबर चलता गया
रहम था तेरा, करम था तेरा, दरिया भी साथ चलता गया।

सब कुछ सदा यकसाँ रहता नहीं
जो आज है वो कल रहता नहीं
ये दस्तूर अज़ल से चलता रहा है
यहाँ मुस्तकिल कोई रहता नहीं
कश्ती में मेरी छेद हो गया , नगीना मेरा जुदा हो गया
कश्ती यहीं पे पड़ी रह गई , नाख़ुदा मेरा बिदा हो गया।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।


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