जिसकी है सुन्दर सी एक कहानी
गाँव था छोटा सा गुमसुम सा एक
जिसमें मिली थी मुझको निशानी
बाक़रीना सब होता गया, घर मेरा सफ़ीना बनता गया
ऐसा रहा कुछ तेरा करम, सफ़ीना नगीना बनता गया।
बग़ीचा था फ़िर एक हमने लगाया
खिला फूल जो भी दिल से लगाया
बख़्शीश तेरी झड़ी बन गई
भर के जी सब कोई उसमें नहाया
सहारा जो तेरा मिलता गया, तेरा नाम बहाना बनता गया
तेरे साये में मैं चलता गया, रास्ता ख़ुद ब ख़ुद बनता गया।
सरहदें पार करते चलते गये
सफ़र में आगे को बढ़ते गये
हम तो रहे बेख़बर ख़ुद से लेकिन
तेरी ख़बर उसूलन रखते गये
किनारा नज़र से दिखता रहा, सफ़र ये बराबर चलता गया
रहम था तेरा, करम था तेरा, दरिया भी साथ चलता गया।
सब कुछ सदा यकसाँ रहता नहीं
जो आज है वो कल रहता नहीं
ये दस्तूर अज़ल से चलता रहा है
यहाँ मुस्तकिल कोई रहता नहीं
कश्ती में मेरी छेद हो गया , नगीना मेरा जुदा हो गया
कश्ती यहीं पे पड़ी रह गई , नाख़ुदा मेरा बिदा हो गया।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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