जो है प्राप्त, वही सब है पर्याप्त मेरे लिए
और-और बढ़ाता है कीमत बेचने के लिए
जबकि ज़ब्त बढ़ाता है सब्र, ख़ुशी के लिए।
दरख़्त ने पत्ते से कहा, मेरी बात को ग़ौर से सुनना
यहाँ एक आता एक जाता, ये हक़ीक़त पहिचानना।
पेड़ कहत है पात से , तू सुनले मेरी बात
इस घर की रीति ये, इक आवत इक जात।
ज़िद्दी है वो , बिना बुलाए भी आएगी
आख़िर वफ़ात है, वफ़ा तो दिखाएगी।
जिस्म को तो मौत से हार जाऊँगा, अब नहीं तो फ़िर सही
ख़ुशबू के मानिंद बिखरा मिल जाऊँगा मैं , कहीं ना कहीं।
ग़म नहीं ग़र कोई मुझको दग़ा दे दे
मैं ना करूँ दगा, ऐसा करम कर दे।
वक्त को वो सभी कुछ याद है
जो कभी रही तेरी फ़रियाद है
तू फ़िक्र ना कर , रख भरोसा
काम होने की होती, मियाद है।
मैंने कहा मौत से , मैं तैयार हूं , क्या तुम भी तैयार हो?
चुप मत रहो,ये तुम्हारा इख़्तियार है,तुम मेरी मैयार हो
मुझे तुम्हारे जवाब का इंतिज़ार है , हर रोज़ , हर पहर
ताकि तुम्हारे इस्तक़बाल को मेरा , रेज़ा रेज़ा तैयार हो।
भोजन नहीं है कोई ज़रूरी
मगर है ज़रूर इक मज़बूरी
चाहता हूँ इसी जिस्म से मैं
पा जाऊँ वह जो है ज़रूरी।
सुनो मेरी ये जो अहलिया है
जिसका सादा सा हुलिया है
मैं सबको बाख़बर कर दूँ कि
वह अस्ल में एक औलिया है।
कहते हैं , हद हद चले सो औलिया
और ये कि जो अनहद चले सो पीर
हद अनहद दोऊ चले,एकल रंग रचे
सब कोई बोले कि होगा कोई फ़क़ीर।
इस मीज़ान से नापलें वो औलिया हैं, हद जो लाँघी नहीं
हद अनहद के परे का फ़क़ीर हूँ मैं , मगर लकीर का नहीं।
उठने के लिए पहिले बैठना ज़रूरी है
जैसे भरने के लिए ख़ालीपन ज़रूरी है
यह सब लाओत्से ने सिखाया था कि
आने की ख़ातिर जाना होता ज़रूरी है।
जाना लाज़िमी है, इसको मुकर्रम बनाएं
मुलाकात ए मर्ग को क्यों न ख़ुर्रम बनाएं
जिस्म के परे में जो पोशीदा बनी रहती है
उस ग़ैबी तवानाई से मौका,मुकर्रम बनाएं।
जीवन नदिया बहती जाइ, छूटे कितने पाट
एकहि रट मन में लगी, कब पाये निज घाट।
हक़ीक़त की फ़ितरत पोशीदा हुआ करती है
जैसी वह दिखती है, वैसी हुआ नहीं करती है
वह तो बोई हुई है ज़िन्दगी के हर इक धागे में
जब फ़सल कटती है,तो मालूम हुआ करती है।
हक़ीक़त के कई नाम हैं जैसे हक़,माबूद,बख़्त
एक नाम जो अक्सर सुना जाता है,वह है वक्त
वक्त आहट नहीं करता पर हुक्म देता हर वक्त
अपील नहीं है, होता कभी मीठा कभी करख़्त।
ज़िन्दगी तो गुज़ार दूँगा पर तुम होते तो कुछ ऐसा होता
जैसे तड़पती धरती पे बारिश होने से हाल उसका होता।
तुम अगर जाते हो, ठीक है, पर इतना तो करना
साँस के मानिंद जा कर, फ़िर लौट आया करना।
मुझे क्या चाहिए तुम्हारी याद के सिवा
एक एक लफ़्ज़ याद है जो बना सिला।
क्यों ग़म करूँ अगर छोड़ते हो मुझको ?
जो दे दिया है वही सम्हाल लेगा मुझको।
वफ़ात= मौत। मैयार= कसौटी।
इस्तक़बाल= स्वागत।रेज़ा रेज़ा= कण कण।
अहलिया= जीवन संगिनी।मीज़ान= तराज़ू।
मुकर्रम= पूज्य।मर्ग = मौत।ख़ुर्रम= ख़ुश।
ग़ैबी= पार लौकिक।तवानाई= ताक़त।
पोशीदा= छिपी हुई।हक़=रब।माबूद= पूज्य।
बख़्त= भाग्य।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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