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Sunday, March 28, 2021

आँसू

ये जो आंखों में छलकता है पानी
न समझ लेना इसको, कोरा पानी
समझने के लिए कोई भी, कहानी
मिलेगा नहीं कहीं भी इसका सानी।
इसकी तासीर में जो होती है रवानी
सूखने पर भी बनती है एक कहानी।

हर आँसू में छिपा रहता कोई राज़ है
ज़िन्दगी से जुड़ा रहता , कोई राज़ है
ज़िन्दगी होती जो है इतनी ख़ूबसूरत
क्योंकि हर राज़ होता इसका साज़ है।
राज़ का जब टूटने लग जाता है साज़
ज़िन्दगी बनने लगती है फ़िर, नासाज़।

एक क़तरा आंसू में समन्दर , छिपा है
जहां की आग बुझाने का सामां छिपा है
जिसको कोई तूफ़ान हटा नहीं सकता
उसको बहा ले जाने का सैलाब छिपा है।
दर्द उठने पर जो आंसू छलक पड़ते हैं
वो यादों का समन्दर लिए फ़िरा करते हैं।

कुछ हैं जो आंसू बहाते नहीं,  पी जाते हैं
जब आंसू आते हैं वे होंठों से मुस्कुराते हैं
आंसू खोलते हैं राज़, वो छुपाया करते हैं
मुझको तरस आता है, वो सो नहीं पाते हैं।
आंखों में लिए फिरता हूं मैं हर दम दरिया
प्यासा न लौटे कोई , क़िस्मत का सताया।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।





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