दिल चाहता है बयाँ करना, ज़ुबाँ से बयाँ होता नहीं है।
सच लगता है जो यहाँ पर, वो सच मगर होता नहीं है
क्या ख़ूब खेल है ज़ुबाँ का, सच नुमाया होता नहीं है।
झूठ के पैबन्दों से रच जाता है सच्चाई का ऐसा जामा
जिसमें पैबन्दों का कोई ज़िक्र , कहीं पर होता नहीं है।
एक घर बनाने में कितनों की, सारी उम्र खप जाती है
बस्तियाँ जल जाती हैं, जलानेवाला कोई होता नहीं है।
लोग चलते पैदल हज़ार मील, कोई रोके, होता नहीं है
मंज़िल पहुचने से पहले गिरते, कोई रोदे, होता नहीं है।
भूख से तड़पते हैं लोग, मगर कहीं शोर, होता नहीं है
तस्वीरें दिखाती चमचमाता सूरज, फ़ज्र होता नहीं है।
एक बेटे को जवान करने में एक माँ बूढ़ी हो जाती है
बेटा ग़ायब हो जाता है, किसी को फ़र्क़ होता नहीं है।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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