अब क्यों हो रहे हो इतने लाचार, उसके चले जाने से।
देख, जाने से पहले उसने बहुत कुछ दे दिया है तुझको
वही सम्हालता रहेगा हरदम तुझको, हर नये फ़साने से।
न हो परीशाँ इतना तू, तौफ़ीक को मुसीबत न समझ तू
कोशिश तो कर, मान जायेगा एक दिन मन, मनाने से।
ख़ुदा ने करम कर के, बख़्शा है तुम को ऐसा नाख़ुदा
जो जाकर भी तेरे पास, आता रहता है, हर बहाने से।
कौन निभाता है साथ इतना, एक बार बिछड़ने पे ऐसे
जैसे वो तुझे हरदम, झाँकता रहता है, तेरे सिरहाने से।
तौफ़ीक= सामर्थ्य। नाख़ुदा= नाव खिवैया।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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